पति की प्रॉपर्टी में पत्नी का कितना होता है हक, जाने सुप्रीम कोर्ट के फैसला Property Rights
Property Rights - भारत में संपत्ति अधिकारों को लेकर अक्सर कानूनी विवाद खड़े होते हैं, खासकर पति की संपत्ति पर पत्नी के अधिकार को लेकर। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है जो न केवल एक पुराने मामले को सुलझाने की दिशा में एक कदम है, बल्कि यह लाखों हिंदू महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को भी सीधे तौर पर प्रभावित करेगा।

महिलाओं को संपत्ति पर अधिकार कैसे और कब मिलता है?
महिलाओं को संपत्ति पर अधिकार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 के तहत मिलता है।
- धारा 14(1) महिलाओं को उनके पास आई किसी भी संपत्ति (भले ही उपहार, वसीयत या भरण-पोषण स्वरूप मिली हो) पर पूर्ण स्वामित्व का अधिकार देती है।
- जबकि धारा 14(2) कहती है कि यदि किसी महिला को संपत्ति किसी विशेष शर्त या सीमा के साथ दी गई है, तो वह शर्त मान्य मानी जाएगी और स्वामित्व सीमित रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों भेजा मामला बड़ी बेंच के पास?
9 दिसंबर 2024 को, सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ — जस्टिस पी. एम. नरसिम्हा और जस्टिस संदीप मेहता — ने इस विवादास्पद मुद्दे को एक बड़ी पीठ को सौंपने का निर्णय लिया। उनका मानना था कि यह केवल एक कानूनी तकनीकी मामला नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव भारत की करोड़ों हिंदू महिलाओं की संपत्ति पर स्वामित्व और आर्थिक स्वतंत्रता पर पड़ेगा।
मामला क्या था? – 1965 से चला आ रहा विवाद
यह विवाद 1965 में शुरू हुआ जब एक व्यक्ति, कंवर भान, ने अपनी पत्नी को जीवनभर के लिए एक ज़मीन दी, लेकिन शर्त यह रखी कि उसकी मृत्यु के बाद यह संपत्ति उनके उत्तराधिकारियों को मिलेगी। पत्नी ने बाद में वह ज़मीन बेच दी, जिससे विवाद शुरू हुआ।
बेटों और पोतों ने इस पर आपत्ति जताते हुए अदालत में याचिका दायर की।
अदालतों में अलग-अलग फैसले
1977 में निचली अदालत ने पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया, और सुप्रीम कोर्ट के 'तुलसम्मा बनाम शेष रेड्डी' मामले का हवाला दिया, जिसमें धारा 14(1) के तहत महिलाओं को पूर्ण अधिकार मान्यता दी गई थी।
लेकिन बाद में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने ‘कर्मी बनाम अमरु’ केस को आधार बनाकर धारा 14(2) को प्राथमिकता दी, जिससे मतभेद और बढ़ गए।
पति की संपत्ति में पत्नी का कितना हक होता है?
- अगर पति की मृत्यु वसीयत के बिना होती है, तो संपत्ति पत्नी, बच्चों, माता-पिता आदि में बराबर बांटी जाती है।
- अगर वसीयत है और उसमें पत्नी को नामांकित किया गया है, तो पत्नी को उस हिस्से पर अधिकार होता है।
- अगर पत्नी को जीवनभर के लिए संपत्ति दी गई है लेकिन उस पर शर्तें लगी हैं, तो उस संपत्ति पर पूर्ण अधिकार नहीं होता।
विवाद का मुख्य मुद्दा: धारा 14(1) बनाम 14(2)
यह केस साफ तौर पर दिखाता है कि कानून की व्याख्या पर किस तरह महिलाओं के अधिकार निर्भर करते हैं।
- क्या महिला को संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व मिलेगा या
- सिर्फ सीमित अवधि/जीवनभर के लिए उपयोग का अधिकार?
इसपर अब सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ स्पष्ट दिशा-निर्देश देने वाली है, जिससे ऐसे भविष्य के विवादों को सुलझाने में सहायता मिलेगी।
क्यों यह फैसला महिलाओं के लिए मील का पत्थर हो सकता है?
यह निर्णय केवल एक पारिवारिक विवाद को नहीं सुलझाएगा, बल्कि यह पूरे भारत में महिलाओं की संपत्ति पर कानूनी स्थिति स्पष्ट करेगा।
- क्या महिलाएं स्वतंत्र रूप से संपत्ति बेच सकती हैं?
- क्या पति द्वारा दी गई संपत्ति पर उनका पूरा अधिकार होगा?
इन सवालों का जवाब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मिलेगा और यह महिलाओं के आर्थिक अधिकारों को मज़बूती देगा।
जागरूकता की जरूरत: महिलाएं अपने अधिकार जानें
इस केस से यह बात फिर साबित हुई है कि भारत में बहुत सी महिलाएं आज भी अपने संपत्ति अधिकारों के प्रति अनजान हैं।
- महिलाओं को चाहिए कि वे कानून की जानकारी लें,
- अपने हक के लिए आवाज़ उठाएं, और
- अगर संपत्ति से संबंधित कोई विवाद हो तो कानूनी सलाह जरूर लें।
निष्कर्ष - Property Rights In Hindi
संपत्ति से जुड़े मामलों में महिलाओं के अधिकारों की स्पष्टता न केवल परिवार में शांति बनाए रखने में मदद करती है, बल्कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी एक मजबूत कदम होती है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस दिशा में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हो सकता है।